मनुष्यता's image
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एक आदमी अपने लड़के के,

घर बसने की तैयारियों में

कटवा डाला एक पेड़

जिस पर था किसी और का बसा हुआ घर..


हे ज़मीन पर पड़े नन्हें परिंदों!

क्या यही थी तुम्हारी नियति?

क्या था तुम्हारा प्रारब्ध?

मुझे नहीं हो सकता इसका ठीक ठीक बोध..


परन्तु तुम्हारे जमीन पर पड़े रहने से,

मनुष्यता के गिरने की बू जरुर समझ आती है

मेरा मन मुझे धिक्कार रहा

कहो मनुष्य तुम भी कहो कुछ..

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