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तेरी हर आदत को हमदम!
क्या क्या समझ बैठे थे हम,
वो कुछ इशारें थे जिन्हें,
दुनिया समझ बैठे थे हम।
रफ़्ता रफ़्ता ही सही तुम्हें,
अपना समझ बैठे थे हम।
मुस्कुराने की अदा को,
खुशियाँ समझ बैठे थे हम।
पल भर के उस लम्हें को,
ज़िंदगी का सहारा समझ बैठे थे हम।
तेरे मन को ऐ हमदम!
घर अपना समझ बैठे थे हम।
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