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पुरुष प्रधान समाज रहा है
अब तक तो यही सुना है
शायद सच से अंजान रहे है
इनका नायाब व्यक्तित्व रहा है।
गर स्त्री होना कठिन रहा है
पुरूष होना आसान कहाँ है
अपने सपनों को कर दरकिनार
सबके सपनों का स्तम्भ रहा है।
प
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