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प्रगतिशील स्त्री!
हाँ वही जो पीसती थी
अपने सपनों को समाज की चक्की में,
आज अनेकों उद्योगों की मालकिन है।
प्रगतिशील स्त्री!
हाँ वही अन्याय सहना जिसकी
नियति बन चुकी थी
आज स्वयं न्याय सिहांसन पर आसीन है।
प्रगतिशील स्त्री!
हाँ वही जो तरसती थी,
पाठशा
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