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एक दिन माँ ने पूछा
इतनी किताबें मंगाते हो
क्या करोगे इतना सब पढ़के?

मैने कहा
कुछ कर सकें या न कर सकें
लेकिन इतना तो तय है कि
किसी अंधी भीड़ का हिस्सा नहीं बनेंगे।

जहां भी रहेंगे
अपना दिमाग होगा, अपनी आखें हाेगीं,
अपनी स्वतंत्र जबान, अपनी लेखनी होगी।

- प्रद्युम्न

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