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घिनौना ये सोच है,
घिनौने ये कुछ तुच्छ नामर्द लोग।
"बेटी-बचाओ" नारे का क्या हुआ?
क्या तुम इतनी जल्दी भूल गए?
बेटियों ने जीता है पुरस्कार,
देश के नाम की हुई जय जयकार।
ओ तुच्छ!, है तुम पर मुझे धिक्कार,
नज़ाने कब रुकेगा ये बलात्कार?
बयान-बाज़ी हमने देखी बहुत,
क्या सच में कुछ कर के दिखाओगे?
कब उन तुच्छ को सबक सिखाओगे ?
क्या तुम सच में बेटी-बचाओगे?
चीरहरण से भी भयावह स्थिति है अब,
नींद से तुम जागोगे कब?
तुम इस रेप पर लगाम,लगाआगे कब?
इन दरिंदों को फ़ांसी पर,लटकाओगे कब?
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