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"प्यार की नदी बनी है बूंद सी"
कितने गीत दर्द भरे गाऐं हम,
वेदना कभी नही पसीजती,
उन्नति सजी किसी दालान में,
आंसुओं को बेधड़क खरीदती।
झूलती “हंसी” समय का पालना,
झुनझुना बजा रही विवश घड़ी,
बार बार वक्ष से लगा लिया
फिर भी नकचढ़ी कभी न रीझती।
भविष्य के अंधेरे ब्लैक बोर्ड पर,
समस्या काल-दोष की न हल हुई,
अर्थहीन हो
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