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"हर रोज़ कहानी देता है"
सृष्टि के भगवान
तुझे इंसान सलामी देता है
ख़ानों में
कारख़ानो में
भवनों के शीश, तहखानो में,
हर बूंद पसीने की तुझको
देकर तेरी ही सृष्टि को,
हर रोज़ कहानी देता है
मज़दूर निशानी देता है,
भावों से भर भगवान
तुझे इंसान सलामी देता है।
खेतों में खलिहानों में
जंगल दरिया चट्टानों में,
सारा ही कुनबा खप जाता
केवल एक भ्रम ही बच पाता,
तब भी वह बादल बन करके
हर ओर तरक्क़ी को भर के,
ऋतु को इनाम वो देता है
श्रम को अंजाम वो देता है
सृष्टि के भगवान
तुझे इन्सान सलामी देता है।
-प्रदीप सेठ सलिल
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