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"रोशनी की जिल्द में काले सफ़े देखें जरा।"
अब चलो सड़कों पे बंगले छोड़कर देखें जरा
रोशनी की जिल्द में काले सफ़े देखें जरा।
आसमाँ से तोड़कर तारे सजाए हैं जहाँ
उनके तहखानों में गर्दिश का समाँ देखे जरा।
तारीख़ में जब नूर के किस्से लिखेंगी पीढियां
रात के टुकड़ों की चर्चा हो वहाँ देखें जरा।
आदमी की नस्ल से ही आदमी की दुश्मनी
फूल की घाटी में शामिल ख़ार हैं देखें जरा।
जगमगाते चाँद तारे ख़ूब लगते हैं मगर
टूट कर गिरते सितारे भी वहाँ देखें जरा।
--प्रदीप सेठ सलिल
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