
Share0 Bookmarks 141 Reads0 Likes
"स्वप्न बिके बेभाव"
आसमान से सुबह उतरकर,
आ पहुंची फुटपाथ पर,
मिले दुखों को पाँव,
ग्रहण लगा इस गाँव।
संकरी बस्ती ठौर ठिकाना,
रोटी का सब ताना बाना,
पढ़ना लिखना,
"थम्ब" के जितना-
सूखे में पानी का दिखना,
झण्डा लिखता भाग
सहरा में है नाव,
बिखरे सारे ख़्वाब।
भूख बीजने लगी पसीना,
रहन हो गया मरना जीना,
व्यथा पीटती रही ढिंढ
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments