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'ओ, अंबर की नन्ही गुड़िया.....'

Pradeep Seth सलिलPradeep Seth सलिल August 5, 2022
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"ओ! बरखा की बूंद क्यों मिटतीं।"


ओ! अंबर की नन्ही गुड़िया

कौन  खेल खेला  बतला दो,

किसने  प्यार जताया तुमसे

क्यों  भू पर आईं समझा दो,


जान  हथेली  लेकर  फिरतीं

ओ!बरखा की बूंद क्यों मिटतीं।


पृथ्वी की तो प्यास बुझाई

चातक-मन की नींद चुराई,

शैशव की बचपनी सुआशा

स्वम् पीड़ित फिर भी मुस्काईं,


सदैव बूंद  नर्तनमय  दिखतीं

ओ!बरखा की बूंद क्यों मिटतीं।


बहुत देर से  आस लगाये

बैठे थे  सपने  मुरझाझाए,

ओ, दुखिया तुमने ही आकर

कलि कलि में स्वप्न सजाए,


सहज सरल मिट्टी में मिलतीं 

ओ!बरखा की बूंद क्यों मिटतीं।


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