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"किसने दीवाने खास को मजमा बना दिया
आईन की इबारतें नारों में ढाल कर."
×××
पत्ते वही दोहराए दरख्तों ने डाल पर
जंगल है सियासत का चलो देखभाल कर,
अरमान की भट्टी में न अंगार शेष हैं
हासिल नही कुछ भी बुझी आतिश उछाल कर,
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