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"तरक्की के साए में"
सुनो
जिन्हें
दाना-पानी देकर पाला था
अंकुर से दरख़्त में ढाला था,
वो पक्षी-
मुंडेर तक आते हैं
रस्म-अदाई कर जाते हैं।
आकाश संपन्न हो गया है
कोमल चांद कहीं खो गया है,
इधर
मैं ठीक हूं
देखो
तुम चिंता न करना,
यहाँ
समय के इस पार
आँखें खोजती हैं
उसे
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