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"गुड़ियों वाली एक रसोई"
छुट्टी के दिन बहुत सुहाते
सुबह शाम बातूनी रातें,
सखा सहेली नटखट खेल
गली बाग मीठी सौगातें।
मम्मी पापा दादा दादी
गर्मी की छुट्टी हुड़दन्ग
मजे मजे में ढेर सी बातें,
सीखीं मिलकर उनके संग।
सब्जी रोटी दाल पकाना
मम्मी ने समझाया ख़ूब
गुड़ियों वाली एक रसोई
छज्जे का कर डाला रूप।
पापा खेल-खेल अंग्रेजी,
वावॅल-एडजेक्टिव समझाते
अंक अंक को जोड़ घटाकर
गणित खिलौना सा कर जाते।
दादा दादी की मत पूछो
लाड प्यार से हमें बताते
ये अच्छा ये हम करते थे
युवा, शिशु, शिक्षक बन जाते।
छुट्टि के दिन बहुत सुहाते,
सुबह शाम बातूनी रातें।
--प्रदीप सेठ सलिल
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