
"बचा अकेला बूढ़ा बरगद यादों से बतियाने को"
चाँद सलोना चलकर आया
शायद साथ निभाने को,
घर में बैठा सघन अंधेरा
आतुर दर्द सुनाने को।
कुछ बचपन की कुछ यौवन की
कुछ कुछ प्रौढ़ अवस्था की,
कथा कहानी लेकर आया
मुझसे कुछ बतियाने को।
दर्पण मुझे दिखाने को।
दादी के पल्लू की बातें
अम्मा के आंचल की मेहनत
कालेज वाली खूब शैतानी,
ऑफ़िस याद दिलाने को।
दोपहिया की राज सवारी-
बच्चों का रथ बन जाना,
बेगम का महारानी होना
राजा मुझे बनाने को।
धीरे धीरे बसा घोंसला
छोड़ परिंदे दूर हुए
बचा अकेला बूढ़ा बरगद
यादों से बतियाने को।
सांझ ढली पर तम न आया
कुछ क्षण दूर अंधेरा है,
उस तट ने बांसुरी बजायी
जाने किसे बुलाने को।
दूर क्षितिज पर द्रष्टि मेरी
कहती है कुछ कानों में,
बैठक में कुछ क्षण को आता
अतिथि साथ निभाने को।
चाँद सलोना चलकर आया
शायद कुछ समझाने को,
अंतिम छंद लिखो कहता है
आया मैं ले जाने को।
--प्रदीप सेठ सलिल
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