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तुम हमारे घर कभी आते नहीं,
यह शिकायत कर सकूं संबध अब ऐसा नहीं।
तुम हमारे घर कभी आते नही
यह शिकायत कर सकूं
संबध अब ऐसा नही।
औपचारिकता निभाना
मुस्कुराना गुनगुनाना,
फिर रसोई से तनिक भर
झाँकना बर्तन बजाना,
वक्त के निष्ठुर चलन में
याद भी है या नही।
संबध अब ऐसा नहीं।
देर तक गीतों को सुनना
उनमें ही फिर स्वप्न बुनना,
प्रातः को सजना संवरना
"बस" में सुविधा ठौर चुनना,
वो गए मौस
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