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- 'आईन' ! अगली पीढ़ी को सौगात क्या दूंगा'
पूछे कोई जो नाम तो मुफ़लिस बता देना,
शहर में उगता हुआ कैक्टस दिखा देना,
ये सीली गलियाँ ही तो मेरी सारी दुनिया है,
‘आईन’ के पन्नों का ये हिस्सा दिखा देना।
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तोहफ़े में फूलों संग देखो खार लाया हूँ,
दौरे-फ़िज़ा में दर्द की झंकार लाया हूँ,
चौखट के वन्दनवार में कुम्लाही कलि है
‘आईन’ के लफ़्ज़ो का नम इज़हार लाया हूँ।
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मैं मान भी जाऊँ के तू है चारागर मेरा,
रहबर सिवा एक वोट के तुझको मैं क्या दूँगा,
हसरत तरक़्क़ी है तो फ़िर वो क्यों नही हासिल
‘आईन’ ! अगली पीढ़ी को सौगात क्या दूंगा।
---प्रदीप सेठ सलिल
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