
खाली बेठै सोच रही थी क्या किया जाए
क्यों ना इतमिनान से जिंदगी से कुछ सवाल किये जाए,
ऐ जिन्दगी,
खुशियों की तन्हाई में, सूकून की हलचल में,
ख्वाहिशों के मेलों में, अन्याय की महफ़िल में,
शोर के अल्फाजों में, अंत के आगाजो में,
बारिशों की श्रृतु में, इच्छाओं की मृत्यु में,
खुशियो के नीरो में, शब्दों के तीरों में,
तू क्या सुनने कहती है, तू क्या समझने कहती है
सहर के उजालों में, शब के अंधेरों में
भीड़ के हर चेहरे में, सामाजिक पहरे में,
हर कली में फूलों में, राहों के शूलों में,
सांसों की किश्तों में, बेफिजूल रिश्तों में,
गृहस्थ जिम्मेदारी में, प्यार की ख़ुमारी में
क्या तू करने कहती है, तू क्या समझने कहती है
पल की रूसवाई में, अगले क्षण की उल्फत में,
मन में उठती चीख़ों में, चेहरो की मासूमियत में,
जज़्बातों की चालों में, बेमतलब खयालों में
आंखों में बरपी नींदों में, खयालों की बूंदों में,
आज की सच्चाई में, कल की परछाई में,
तू क्या समझने कहती है, तू क्यूं परखती रहती है
ऐ जिन्दगी,
मैं रोज़ सवाल करती हूं,तू कोई जवाब नहीं देती,
कुछ तो बता ऐ जिन्दगी, तू क्यूं हिसाब नहीं देती
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