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वक्त अपनी चाल बदल रहा है,
बूढ़ा पेड़ क्रमिक ढल रहा है,
पपड़ी तिनका तिनका कर झड़ गई है,
एक नन्हा पेड़ नई कोपल उगल रहा है
नियति का खेल देखो कितना निराला है,
हिम्मत है जब तक, तब तक बोलबाला है,
अंधेरों का आगमन निश्चित सभी का,
यौवन है जब तक सफर में उजाला है
चिंताएं सुखा दे सब्ज़ पेड़ो को भी,
दुखो ने उन्हें कैसे जड़ कर डाला है,
संभालो उन्हे जिजीविषा रहे संग,
अपमान मां बाप का प्रलय की हाला है
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