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एक नन्ही सी कली, आंगन में बहार बन आई,
नजर से बचने को मां ने, स्याही बार बार लगाई,
चलने लगी लड़खड़ा तो, पेरौ में पायल पहनाई,
हो भी ओझल ज्यों नजरों से, धनक रहे सुनाई,
थी वो लाड़ली बाबा की, थी मां की वो परछाई,
चेहरे की मुस्कान से उसने, ना होने दी रूसवाई,
नया खिलौना नयी फराक, जाने कितनी दिलवाई,
अपनी हर एक जिद्द भी उसने, बाबा से मनवाई,
स्कूल में भेजी गुडिया रानी, सिखन को नयी कहानी,
पढ़ा लिखा के सभय बनाना, मां बाबा की थी मनमानी,
पांच जमात ही पार करी थी, बालकपन से ना उभरी थी,
मासूम सी कोमल सी वो तो, अल्हड़पन की गगरी थी,
नियती ने एक पल
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