
Share0 Bookmarks 169 Reads1 Likes
मैं तुझ संग जीना चाहती थी,
तेरे गालों को अमूमन अपने माथे की लाली से रंगना चाहती थी,
मैं चाहती थी तेरी आंखों को अपनी नजरों का स्याह रंग देना,
तेरे होंठों को अपने होंठों की सुर्खियत देना,
तेरे आलिंगन के माधुर्य में मदहोश होना,
तेरे आगोश में वक्त बेवक्त बेहोश होना
मैं बादल सा बन तुझ में बरसना चाहती थी,
तेरे होंठों के किरोशिए से बने अल्फाज सुनना चाहती थी,
तेरे दिल की धड़कन को खुद में महसूस करना चाहती थी,
तेरी बाहों में डूब मछली सा तैरना चाहती थी,
मैं अपने जिस्म को तेरी ओंट से ढकना चाहती थी,
तेरी नजरों में चांद सा टिमटिमाना चाहती थी,
मैं अपने गर्भ में तेरा सपना पिरोना चाहती थी,
उन सपनो को फिर तुझसा बनाना चाहती थी
तुझे माला बना मोती में पिरोना चाहती थी,
तेरे बटुए में फोटो बन थिरकना चाहती थी,
तेरे आशियां में कोयल सा चहकना चाहती थी,
तेरी सांसों में उमर भर महकना चाहती थी
तेरी तकलीफ को खुद में समाना चाहती थी,
तेरे दर्द की सिलवट में बिस्तर बन जाना चाहती थी,
तेरी हर जंग ने मैं ढाल बनना चाहती थी,
तेरी हर जीत में खुशियां मानना चाहती थी
तेरे हर सपने में मैं अपना अस्तित्व चाहती थी,
तुझसे मिलता सा अपना एक व्यक्तित्व चाहती थी,
मैं तुझे अपना सब कुछ बनाना चाहती थी,
तुझ संग ही मैं मृत्यु की गोद में समाना चाहती थी.
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments