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जाग उठा एक सोया सपना,
जो मैने तुमने देखा था,
शून्य वही था क्षितिज वही था,
न लगा कभी भूलेखा था
माटी के बर्तन से हम ढलते,
दूर निकल गए थे चलते,
खुशियों के महल बनाने का,
सपना एक हमने देखा था
आकार दिया अल्हड़पन को,
लक्ष
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