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घुटन सा लगता है कभी-कभी एक औरत होना।
यहाँ पैदा होते ही थमा दिया जाता है,
मर्यादा और मान-सम्मान का खिलौना।
कोई और यहाँ तय करता हमारा,
उठना-बैठना, पहनना-ओढ़ना, जागना-सोना।
जिस पर बीते वही समझ पाए,
कैसा लगत
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