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मोरपंख को चूमती हो जब अधर पर धरकर,
बंशी शिकायत करती है तब बंशीधर से रूठकर..
चेहरे को छुपा लेती हो जब ज़ुल्फ़ें से ढककर,
छा जाती है बदरिया तब अम्बर पर घन बनकर..
༺♡~#कुमारलक्ष्मीकांत ~♡༻
बंशी शिकायत करती है तब बंशीधर से रूठकर..
चेहरे को छुपा लेती हो जब ज़ुल्फ़ें से ढककर,
छा जाती है बदरिया तब अम्बर पर घन बनकर..
༺♡~#कुमारलक्ष्मीकांत ~♡༻
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