*दिन,रात,दोपहर*'s image
Poetry1 min read

*दिन,रात,दोपहर*

lkn kant vishnulkn kant vishnu June 10, 2022
Share0 Bookmarks 31503 Reads0 Likes

वो रात थी,
और मुझे समझ रही थी "दोपहर"
कि जब कभी रात,
रूठ जाती, टूट जाती;
अपने दिलवर दिन से,
बार-बार झुठी रोनी-रोने, दिल बहलाने;
चली आती रात ,
बेचारा "दोपहर" के पास।
पर रात की चाहत,
दिन की होती है न!
तो बेवफा रात छोड़कर,
"दोपहर" को...!
फिर से लौट जाती दिन के पास।

No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts