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आज पहली तनख्वाह आने पर,
खुश तो मैं जरूर हूं,
पर ये भी सोचने पे मजबूर हूं,
तू मेरी उमर का ही था शायद...
जब बचपन मेरा बहार था,
किया तूने पुरा हर ख़्वाब था
मेरी फरमाइशें ज़रूरतों से मोल के,
अपने जेब के सारे सिक्के टटोल के
तू धूप में जलता रहा,
संसार से लड़ता रहा
हर दिन लोकल ट्रेन बदलता रहा,
और एक शिफ्ट extra करता रहा
संघर्ष में जीवन गुज़ारा तूने,
कदमों
खुश तो मैं जरूर हूं,
पर ये भी सोचने पे मजबूर हूं,
तू मेरी उमर का ही था शायद...
जब बचपन मेरा बहार था,
किया तूने पुरा हर ख़्वाब था
मेरी फरमाइशें ज़रूरतों से मोल के,
अपने जेब के सारे सिक्के टटोल के
तू धूप में जलता रहा,
संसार से लड़ता रहा
हर दिन लोकल ट्रेन बदलता रहा,
और एक शिफ्ट extra करता रहा
संघर्ष में जीवन गुज़ारा तूने,
कदमों
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