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दूर कहीं जब गलियों में घंटी वह बजाता है,
हम बच्चों से बूढ़ों तक सबका मन ललचाता है
"पांच रुपया दाम है भईया" ज़ोर–ज़ोर चिल्लाता है,
गर्मी की हर तेज़ चुभन को गोला वाला दूर भगाता है
कॉपी, कलम, किताब छोड़ गुल्लक की ओर जाऊं मैं
कच्ची कैरी या काला खट्टा, सोच रहा क्या खाऊं मैं?
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