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सोचता हूं मैं कि कुछ ऐसा लिखूँ
जो कभी न लिखा गया हो वैसा लिखूँ।
कभी ठहरी हुई, तो कभी बहती हुई
मुकद्दस मोहब्बत की अक्स-ए-रवानी लिखूँ।
एक उम्र, बूढ़ी आँखों रोशनी के खातिर
संघर्षो में जलती जवानी लिखूँ।
रखे समेटे जो खुद में सारी दुनिया का दर्द
दर्द की एक ऐसी कहानी लिखूँ।
छोड़ गए जो अपना सब कुछ वतन के लिए
लिपटी तिरंगे में, मुस्कुराती कुर्बानी लिखूँ।
जो प्रेम की अग्नि में जलती रही,
क्षण भर के मिलन को तरसती रही
श्याम की मैं वो राधा दीवानी लिखूँ।
उफनती दरिया लिखूँ, खामोश सागर लिखूँ
कह गए जो रहीम, मैं वो पानी* लिखूँ।
रवानी लिखूँ, जवानी लिखूँ
दर्द की एक मुकम्मल कहानी लिखूँ
कुर्बानी लिखूँ, दीवानी लिखूँ
कह गए जो रहीम, मैं वो पानी लिखूँ।
---पीयूष यादव
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