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ना हो ग़रज तो फ़िर सिफ़ारिश कैसी?

हो जाए जो पूरी, तो फिर ख्वाहिश कैसी?


मजा तो तब है जब खिलाफ कोई अपना हो

ना करे कोई दोस्त, तो फिर साजीश कैसी?


है जरूरी

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