Share0 Bookmarks 46521 Reads1 Likes
ना हो ग़रज तो फ़िर सिफ़ारिश कैसी?
हो जाए जो पूरी, तो फिर ख्वाहिश कैसी?
मजा तो तब है जब खिलाफ कोई अपना हो
ना करे कोई दोस्त, तो फिर साजीश कैसी?
है जरूरी
No posts
No posts
No posts
No posts
ना हो ग़रज तो फ़िर सिफ़ारिश कैसी?
हो जाए जो पूरी, तो फिर ख्वाहिश कैसी?
मजा तो तब है जब खिलाफ कोई अपना हो
ना करे कोई दोस्त, तो फिर साजीश कैसी?
है जरूरी
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments