
जब सो जाऊँ मैं गहरी नींदों में
मेरे ख्वाबों में तुम जगती हो..
है मुस्कान तुम्हारी बड़ी भोली-सी
तुम कितनी भोली लगती हो..
लेके जुल्फों की चादर,
आंखों में सजा के बादल..
हथेली पे सजाए मेहंदी
मुझसे धीरे-से कुछ कहती है
‘हाँ, अभी भी प्यार करती हो, मुझे तुम याद करती हो’
सुनहरा ख्वाब ये मुझको
बहुत बेचैन करता है..
ना जाने आज भी दिल तुमको
क्युँ खोने से डरता है?
कभी करती थी मुझको पूरा
देखो रह गया अधूरा..
बताओ क्युँ दूर बैठी हो?
क्युँ अब छूने से डरती हो?
क्या सचमुच याद करती हो?
मुझे तुम प्यार करती हो?
था यकिन हमको
ना हम दूर जाएंगे..
बिछड़ेंगे दो पल खातिर
फिर पास आएंगे
पर आज उन्हीं वादों पे
होती है हैरानी...
सुलगता अंदर से हूँ बहुत मैं
बहता आंखों से है पानी..
कहो ना साँस कैसे लूँ?
बताओ चैन कहाँ पाऊँ?
मुझे तो तुम्हारी आदत है..
तुमसे मैं दूर कहाँ जाऊँ?
है कैसा बोझ सीने पर
कभी छू कर जो तुम देखो..
यकीं है क्षण भर के ही खातिर
धड़कनों में जान आएगी..
रगों में प्यार दौड़ेगा..
जिंदगी मुस्कुराएगी..
--पीयूष यादव
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