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ये जिंदगी के पेच-ओ-खम, और तमाम जिममेदारियां दूर हुए सब यार अपने, छूट गई वो यारियाँ। ये उदासी ये उलझने और कम्बख्त ये रात भी डस रही हैं रूह को, और थोपती तन्हाईयाँ। जो पूछता ये ज़माना है, कि क्या-क्या संजोये रखा है? है बंद दिल की कोठारी में, चंद ख्वाबों की सिसकारियाँ। -पीयूष यादव
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