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ऐसा नहीं है कि जिंदगी में कोई खास कमी है, फिर भी न जाने क्यों नींद से दुश्मनी है। फिर से याद आए हैं वो पुराने दिन, फिर से तैरने लगी आँखो में नमी है। कुछ तो हो सुकून मयस्सर हमको भी एक अर्से से मेरे हिस्से में सिर्फ बरहमी है। ऐ खुदा मिटा दे ये वहम आदमी के दिलों से कि जो कुछ हैं बस हमी हैं। (कोराना काल के गम्भीर हालात, निपटने के इंतजाम, और चुनाव को ध्यान में रखते हुए) क्या ख़ाक फरिस्ते हमे ले जाएंगे आसमानों पर दफनाने को भी नहीं मयस्सर दो गज जमीं है। और उनके वादों पर कर लिया ऐतबार हमने, यही एलान है कि जो कुछ हुआ, जिम्मेदार हमी हैं। -पीयूष यादव
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