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मुफलिसी का दाग लिए जब इंसान चल दिए
फिर दोस्त भी गिनाने एहसान चल दिए
शायद वो हाथ थाम ले इसी आस में थे खड़े
मगर रास्ता बदलकर हमराह चल दिए
उठी ना एक बार भी उनकी मोहब्बत भरी नजर
उठकर उनकी बज्म से फिर हम भी चल दिए
अपने नसीब में थे बस गम ही रह गए
फ़िर एक रोज़ मेरे सारे गम भी चल दिए
पहले चली तड़प, फिर उदासी पीछे-पीछे
आंखों से रूठकर आंसू भी चल दिए
जाने के बाद उनके, हुई बेरंग ज़िंदगी
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