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मुफलिसी का दाग लिए जब इंसान चल दिए

फिर दोस्त भी गिनाने एहसान चल दिए

शायद वो हाथ थाम ले इसी आस में थे खड़े

मगर रास्ता बदलकर हमराह चल दिए

 

 

उठी ना एक बार भी उनकी मोहब्बत भरी नजर

उठकर उनकी बज्म से फिर हम भी चल दिए

अपने नसीब में थे बस गम ही रह गए

फ़िर एक रोज़ मेरे सारे गम भी चल दिए

 

 

पहले चली तड़प, फिर उदासी पीछे-पीछे

आंखों से रूठकर आंसू भी चल दिए

जाने के बाद उनके, हुई बेरंग ज़िंदगी

जैसे जिंदगी के सारे, मौजूँ ही चल दिए

 

 

इनके ही सुलगने से थी सांसें संभल रहीं

फ़िर तन्हाईयों में छोड़कर सब अरमान चल दिए

मैय्यत भी न रोक पाई अपनों को मेरे पास

कुछ देर रुक के सारे मेहमान चल दिए

 

 

बेशक हम ना लौटते मगर आवाज तो देते

कुछ लोग बगैर दिए सदायें ही चल दिए

शाम होते होते बस साए थे रह गए

आई जो काली रात तो साए भी चल दिए

--पीयूष यादव


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