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बनके आंसू आंखों से वफ़ा निकले!
मेरे दुश्मन मेरे अपने ही जफ़ा निकले!
थे खुशनुमा मगर अब चुभते हैं सीने में बेमुरव्वत से
मेरे लम्हें मुझसे ऐसे खफा निकले!
होंगे किसी और के हाथों में अब उसके हाथ
उफ्फ! जैसे रूह, जिस्म से कई दफा निकले!
क्युं ना मिले सजा हमको?
और क्युं ना आंखों से लहू निकले?
उसने रखी थी मोहब्बत की हर लाज,
ये तो हमीं थे जो बेवफा निकले!
-पीयूष यादव
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