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जो तुम शहंशाह बने फिरते हो

बता दूं शाम को,किसके जिस्मों पर गिरते हो?

जो तुम चेहरे देख के न्याय करते हो

जान लो आज ही अन्याय करते हो

आंसुओं का कारोबार करके

शब्दों का व्यापार करते हो

अपने सपनों में आग लगा चुके

पता नहीं दूसरों को कैसे प्यार करते हो?

जानता हूं सोच रहे ये तुम्हारी कहानी है

तुम किताबों से कब आंखें चार करते हो?

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