
सुनसान सड़क पर चलती औरत को,
डर किसी जानवर के मिलने का नहीं ,
डर है कि कोई इंसानी भेड़िया न टकरा जाए ,
पीछा करते कही उसका ठिकाना न जान ले,
उसके अपनों को न पहचान ले ,
हर अँधेरे किनारों पे सहम जाती है वो ,
सँभालते कभी कपड़ें कभी खुदको ,
अपने घर की ओर कदम बढाती है ,
बस जल्द से जल्द घर पहुँचना चाहती है ,
जहा वो शायद सुरक्षित है ,
वो जानती है कोई आदमी जब उसे देखेगा ,
जरुरी नहीं हर बार सही नज़र होगी ,
सामने कुछ और मन में और कुछ होगा ,
उसे किसी की बेटी, बहु, माँ या घर की इज़्जत नहीं ,
बस एक चीज़ समझा जायेगा ,
कोई अपनी वासना और उसका आत्मसम्मान बस मिटाना चाहेगा ,
देखकर छूकर या किसी और तरह से ,
उसे मलिन करना चाहेगा ,
दुनिया में निकले न वो ,
घर में कैद उसे ही अपनी दुनिया समझे चाहेगा,
पर वो नहीं रुकेगी ,
तुम हैवानियत फैलाओगे वो दुर्गा बन दमन करेगी ,
वो दुर्बल नहीं द्रौपदी का मनोबल लिए है ,
तृण लिए ही अपनी रक्षा सीता बन करेगी ,
जरुरत पड़ी तो काली बन राक्षश रक्त पीयेगी ,
तुम रावण हो, कौरव हो , रक्तबीज या महिषासुर ,
या हो मानव रूप लिए कोई राक्षश खुदको समझे महान,
वो जननी है तो मरना भी जानती है ,
सहना सिर्फ नहीं चितकारना भी जानती है ,
लगे कमजोर है तो उलटकर देख लो इतिहास और पुराण,
बस थोड़ी बेबस है वो भी तभी तक ,
जब तक ये सोच न बदलदे की ,
गलती उसके कपड़ो समय या उसकी नहीं ,
बस सोच की है ,
जिसे बदलने की छोटी छोटी कोशिशों में वो लगी है ,
और वो सफल जरूर होगी ,
तब तक याद रखना ,
सुनसान सड़क पर चलती औरत कमजोर नहीं ,
- पिंकी झा
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