सुनसान सड़क पर चलती औरत's image
OtherPoetry2 min read

सुनसान सड़क पर चलती औरत

pinki jhapinki jha September 14, 2021
Share0 Bookmarks 206 Reads3 Likes

सुनसान सड़क पर चलती औरत को, 

डर किसी जानवर के मिलने का नहीं ,

डर है कि कोई इंसानी भेड़िया न टकरा जाए ,

पीछा करते कही उसका ठिकाना न जान ले, 

उसके अपनों को न पहचान ले ,

हर अँधेरे किनारों पे सहम जाती है वो ,

सँभालते कभी कपड़ें कभी खुदको ,

अपने घर की ओर कदम बढाती है ,

बस जल्द से जल्द घर पहुँचना चाहती है ,

जहा वो शायद सुरक्षित है ,

वो जानती है कोई आदमी जब उसे देखेगा ,

जरुरी नहीं हर बार सही नज़र होगी ,

सामने कुछ और मन में और कुछ होगा ,

उसे किसी की बेटी, बहु, माँ या घर की इज़्जत नहीं ,

बस एक चीज़ समझा जायेगा ,

कोई अपनी वासना और उसका आत्मसम्मान बस मिटाना चाहेगा ,

देखकर छूकर या किसी और तरह से ,

उसे मलिन करना चाहेगा ,

दुनिया में निकले न वो ,

घर में कैद उसे ही अपनी दुनिया समझे चाहेगा, 

पर वो नहीं रुकेगी ,

तुम हैवानियत फैलाओगे वो दुर्गा बन दमन करेगी ,

वो दुर्बल नहीं द्रौपदी का मनोबल लिए है ,

तृण लिए ही अपनी रक्षा सीता बन करेगी ,

जरुरत पड़ी तो काली बन राक्षश रक्त पीयेगी ,

तुम रावण हो, कौरव हो , रक्तबीज या महिषासुर ,

या हो मानव रूप लिए कोई राक्षश खुदको समझे महान,

वो जननी है तो मरना भी जानती है ,

सहना सिर्फ नहीं चितकारना भी जानती है ,

लगे कमजोर है तो उलटकर देख लो इतिहास और पुराण, 

बस थोड़ी बेबस है वो भी तभी तक ,

जब तक ये सोच न बदलदे की ,

गलती उसके कपड़ो समय या उसकी नहीं ,

बस सोच की है ,

जिसे बदलने की छोटी छोटी कोशिशों में वो लगी है ,

और वो सफल जरूर होगी ,

तब तक याद रखना ,

सुनसान सड़क पर चलती औरत कमजोर नहीं ,

- पिंकी झा 



No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts