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मुझे डर लगता है ,
कई सारी बातों का ,
कुछ बहुत छोटी ,
कुछ पहाड़ सी चीज़ो का ,
जैसे इस दुनिया के खेल के नियम बदल गए तो ,
वो भी तब जब मैंने उन्हें सीखा ही था ,
जैसे सारी खुशियाँ खुशी लगना बंद हो जाए तो,
वो भी तब जब मुझे वो बस मिली ही थी,
जैसे मैं भूल जाऊ हर बिताई याद कुछ भूली बिसरी याद ,
वो भी तब जब मेरा वक़्त खत्म होने वाला ही हो ,
जैसे हसना भूल जाऊ मैं ,
वो भी तब जब बची सिर्फ रोने की वजहें बस हो ,
जैसे मैं भूल जाऊ अपना वजूद या छोड़ दू ढूंढ़ना उसे ,
वो भी तब जब अपने आप से मिली ही हु कुछ वक़्त पहले बस ,
जैसे मैं मिल ना पाऊ तुमसे कभी लाख कोशिशों के बाद भी ,
वो भी तब जब हम मिलने के बेहद करीब हो ,
ये बातें और ऐसी कई सारी बातों का मुझे डर लगता और मुझे ये कहते बिलकुल शर्म नहीं
मुझे डर लगता हैं |
- पिंकी झा
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