
इश्क़ भी बड़ा अजीब झमेला है ,
लोगो की भीड़ में भी न मिलता कोई मेरा है |
बचपन में सीखा सब एक है ,
मोहब्त बना माँ-पापा , भाई-बहन से रखनी है |
ठीक ही सब चल रहा था , मन अपने कामों में लगा था ,
पता चला इश्क़, सम्मान, आदर , स्नेह में भी फर्क है |
सहेलियों में भी इसी खबर की लहर थी ,
पुछताछ कर एक दूजे से समझ ले इसकी कोशिश थी |
साफ कुछ पता अभी तक इस विषय में हमें था कहाँ ,
पहुंचनेवाले थे पता चलने वाला था कुछ-सबकुछ वहाँ |
देखा अलग नज़रिये से हमने एक व्यक्ति को ,
समझ गए वो सब जो पहले समझा न था |
समझे की एहसास अलग कोई किसी को देखकर , सोचकर होता है ,
बिन कहे खुद में ही इस समन्दर में इंसान खुद को डुबोता है |
पता चला ये भवर इतना आसान नहीं है,
कूदते सब है , पार जा पाते सब नहीं है |
पड़े इन चक्करों में हम नहीं , ऐसा नहीं कहेंगे ,
न डूब पाए , न तैर पाए इतना ही कहेंगे |
शक अपनी किस्मत पर , कभी अपनी पसंदो पर होता है ,
वरना अबतक अकेले रह जाए , ऐसा थोड़ी होता है |
पाक बहुत ये नाता है अगर मिल जाए , जुड़ जाये किसीसे,
उम्मीद इतनी करती हूँ, सबको मिले इश्क़ किसी न किसी में |
- पिंकी झा
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments