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कहाँ कुछ बात आती है बैठे-बैठे
सिर्फ़ तेरी याद आती है बैठे-बैठे
दिन यूँही दफ़्तर में गुजर जाता है
रात हिज्र में कट जाती है बैठे-बैठे
तून
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कहाँ कुछ बात आती है बैठे-बैठे
सिर्फ़ तेरी याद आती है बैठे-बैठे
दिन यूँही दफ़्तर में गुजर जाता है
रात हिज्र में कट जाती है बैठे-बैठे
तून
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