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दिल करता है की आज कुछ बोलूं तेरे आगे,
पर क्या, इस सवाल के होने पे चुप हूं।
दानिश के तो कई दर हैं, कोई खोलूं तेरे आगे,
अक्ल-ओ-खिरद के खोने पे चुप हूं।
की आंसू और खून जो न कह पाए तुझे,
की मीज़ान-ए-अद्ल जो न सह पाए तुझे,
की दर्द अफ़ज़ा हुआ पर न पहुंचा तुझ तक,
हलक बंद है...
गीत गायब...
दूर अंधेरे में किसी रूबाई के रोने पे चुप हूं।
खुद रिज़वान शर्मिंदा है तेरे मिजाज़ पर इरशाद,
तेरे ख्यालों से आगे, मैं तेरे होने पे चुप हूं।
For all the people who refuse the rationale...
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