
तू पाकीज़ा है, तेरी हर आदत की तर
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आज एक दफा तफ़्सील-ए-हयात करने बैठे,
जो कुछ हासिल किया और उसे याद करने बैठे;
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दिल में रह-रह कर धुआँ सा उठता है,
कभी तेरे होने का सबूत मिलता है;
साँस खींचू अगर तो हवा करती है,
उठते धुएँ में फिर धुआँ करती है;
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एक अर्से समेटी शोहरत अज्दाद ने,
हम रोज़-ब-रोज़ उसे बदनाम किए हुए हैं;
रोज़ी-रोटी दाना-पानी सब छोड़ छाड़ कर,
तेरी हसरत में जिंदगी हराम किए हुए हैं,
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एक इश्क़ मुकम्मल होता है, दीदार-ए-सनम से यहाँ,
हर रोज़ बिना इज़हार हुए,
एक दिल क़त्ल होता है, मिज़ाज-ए-सनम से यहाँ,
हर रोज़ बिना इंकार हुए;
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मेरे अंदर झाँक के देख तुझे क्या दिखता है,
तेरा अक्स दिखता है, या मेरा इख़्तिताम दिखता है;
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बस फिर उसने पलकें झुका लीं,
और दोबारा हमें जीना याद आ गया;
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कभी चाँद, कभी तारे, कभी आसमाँ की ख्वाहिश होती है,
तेरे इश्क ने दूर- दराज़ों की, चाहत रखना सिखा दीया;
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हसरत-ए-सनम बसरत-ए-तन्हाई
तरस किसकी किस्मत पर हो, हम अक्सर ये सोचा करते हैं;
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तेरे दिल में नहीं तो न सही,
मेरा दिल काफी है हम दोनों के लिए;
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तुझे देख में साँसें लेना भी भूल गया,
अब तक जैसे ये कोई काम रहा हो;
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दो पल तेरा नाम मेरे नाम से जुड़ा,
ज़िंदगी बीत गई दो पल जीते जीते;
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चढ़ता है कोई महताब मूक जैसे आसमाँ पर,
आना तू मेरे दिल में, दबे पाँव उसी तरह;
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अब बंद भी करो रोज़-रोज़ ख़्वाबों में आना.
एक अर्सा बीत गया 'कामिल', हक़ीक़त भूले;
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तेरे इश्क़ में गुस्ताख़ियां बहुत की ज़माने के साथ,
तुझे अपना बना लेना, उनमें सबसे मशहूर हुई;
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दर्द-ए-बयां को कोशिशें बहुत की,
स्याही फैला गई कलम, हर बार रोते-रोते;
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नींद का भी बस इतना ही करम रह गया,
जो ख्वाब न दिखाए उसके, तो पूरी नहीं होती;
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जीत पैमाना है अलग सबकी नज़रों में,
जो इश्क़ करते हो, तो सिकंदर हो तुम;
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जिस रात मैंने तारों से तुम्हें माँग लिया,
न टूटने की ख़्वाहिश तुम्हें देख, ये हर रोज़ किया करते हैं;
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क़त्ल-ए-आम बड़ा आम हुआ,
रोज़ा मुँह दिखाई का शायद, तोड़ दिया उसने;
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बचपन वो चिराग है जो जले तो काएनात रोशन हो,
इसकी आग से सिकी रोटियाँ, पेट नहीं भरा करती;
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महज़ दो पल की बात थी जो उसने ज़ुल्फ़ें खोली,
यकीं करो मेरा, मौसम बदलते देर नहीं लगती;
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तेरे ज़िक्र से ज़ीनत-ए-गुज़र है,
हैरत है वरना, गर कोई हाल पूछ ले;
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