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हुआ सब कुछ,
कुछ ऊपर-कुछ नीचे, थोड़ा ज्यादा-थोड़ा कम,
कुछ मुस्कुराके, तो कुछ में हो गयी आंखे नम,
कही खुद ब खुद ,तो कही दिखाना पड़ा थोड़ा दम,
हो तो गया सब,
लेकिन जब एकांत में बैठा हु अब,
वो सुख जो चाहता था मैं,वो महसूस नही हुआ,
उस खुशी के फरिश्ते ने मेरे मन को नही छुआ,
न जाने क्यू मुझे हमेशा लगता है कि सब कुछ हुआ तो पर
कुछ भी मेरे मन का नही हुआ...
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