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मोहब्बत गर अल्फाजों में बंध सकती ,
तो कोई शायर पैदा ही नहीं होता ,
ये ज़रूर रूह का मसला है ,
जो कभी ज़िस्म में मुक्कमल नहीं हो सकता ,
शायद इसलिये इश्क की दास्तां हर
कोई लफजोँ में कैद करना चाहता है ,
और मोहब्बत फिर भी आजाद रहती है ,
फिर से किसी के दिल पे दस्तक देती है ,
फिर नय़ा शायर जन्म लेता है ,
पर अपना अधूरा ख्वाब फिर
जिंदा छोड़ इस जहां से रुखसत हो लेता है।।।
शिवा पार्थ
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