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न देखा कोई ख़्वाब
तो क्या हर्ज़ है
दुनिया को दे जवाब
कहाँ तेरा फ़र्ज है
बस भाग रहें हैं सब
एक होड़ लगी है
ज़िन्दगी है भाई
थोड़े कोई दौड़ लगी है
पैदा होने से सोच लो
क्या करना हैं
ज़रा सी मोहलत है साँस
फिर तुझे भी मरना है
तो क्यों जीना फिर ऐसे
जैसे कोई मर्ज़ है
न देखा कोई ख़्वाब
तो क्या हर्ज़ है
हर एक साँस का
हिसाब क्यों रखा है
खोल दे हसरतों को
इन्हें बाँध क्यों रखा है
रुक जा, थम जा
ठहर जा वहीं
तू ढूंढ रहा है जो
है तुझी में कहीं
खुद ही से ये पूछने में
फ़िर क्या हर्ज़ है
न देखा कोई ख़्वाब
तो क्या हर्ज़ है
पेड़ों से छंट के धूप
ज़मीन पे पड़ती देखी है?
बारिश कभी समंदर
से लड़ती देखी है?
बादल को दौड़ते देख
छोटे बच्चों की तरह
बाहों में किसी को ओढ़ के देख
ओस और पत्तों की तरह
कहने दे दुनिया को कुछ भी
ये उनका फ़र्ज़ है
न देखा कोई ख़्वाब
तो क्या हर्ज़ है
- परीक्षित
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