
मेरे तुम्हारे रास्ते,
कितनी दफे टकराने के बाद,
मीलों तक संग जाने के बाद,
दो से एक हुए थे,
उस रस्ते को हमने
कितनी ही बातों की ईंटे,
वादों का सीमेंट लगा के बनाया था।
कितनी हँसी के दिन देखें थे हमने,
और शाम ढली तो रातों की नींद का,
लैंप पोस्ट लगाया था।
कभी समय की फ़ास्ट लेन पे,
तो कभी फुटपाथ पर धीरे-धीरे,
चले थे हम
पूरी की कितनी अँधेरी गलियों को,
उम्मीद से रोशन किया था हमने
और भरोसे के चौराहे पे सीधा चलके।
सुकून की चाय पी थी।
संग चलते चलते यादों के मकान,
झगड़ों के गड्ढ़े,
आंसुओं की नहर,
जूनून के फ्लाईओवर,
और फुर्सत के पार्क,
दो सड़कों को जोड़ कर,
जैसे पूरा शहर बना लिया था।
और वो शहर जैसे,
हमारी पूरी दुनिया बन गया था।
आज उन दो सड़कों पर,
न वो चौराहा है,
न फुटपाथ न लैंप पोस्ट।
वो अँधेरी गलियाँ बाकी है बस,
जहाँ रंज से हो कर शिकायत के ऑटो,
अभी कभार भूले भटके निकल पड़ते हैं।
- परीक्षित
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