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कभी कभी मुझे लगता है
मेरी सारी कवितायें बेमानी हैं
कभी मैं शब्दों का सहारा लिए
भागता रहता हूँ
उन सारे जज़्बातों, हालातों से,लोगों और नातों से,
कि जिनके साथ चलने की
ताक़त नहीं होती मुझमें मैं कविता को ताबूत बना क्र
गाड़ देता हूँ उन्हें
या कभी जब
मन की बातें,
सीधी, साधारण और सादी लगती हैं
उन सीधी-सादी बातों के धागे को
शब्दों की सींख से बुनकर
स्वेटर बना देता हूँ उन्हें
कि अकेलेपन की सर्द रातों में
अपनी ही नीरस बातों से ऊँब न जाऊं मैं
ऐसी ही एक रात को
एक कविता आके बैठी मेरे पास
पूछने लगी मुझसे
क्यों को तुम इतने उदास?
सर्द रात में देने को No posts
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