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कुछ मुक्तक । हिंदी । परम गरवलिया

Param GarvaliyaParam Garvaliya June 16, 2020
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कुछ मुक्तक - 5



बस एक मुलाकात करनी है ;

दिल से दिल की बात करनी है।


यूँ झुल्फ़ों से निकली शाम ;

तब से सितारें भी बहक रहे है।


आपने हँसकर पिलाया जो जाम ;

तब से मयख़ाने ख़ामोश बैठे है।


अचानक से आ गए सामने ,

मुश्क़िल है यक़ीन करना ;

ख़्वाब हो या हक़ीक़त।


डूबा वही तो उभरा है इश्क़ के साहिल में ;

हारा वही तो जीता है , इश्क़ के खेल में।


-परम गरवलिया ©







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