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कुछ मुक्तक - 5
बस एक मुलाकात करनी है ;
दिल से दिल की बात करनी है।
यूँ झुल्फ़ों से निकली शाम ;
तब से सितारें भी बहक रहे है।
आपने हँसकर पिलाया जो जाम ;
तब से मयख़ाने ख़ामोश बैठे है।
अचानक से आ गए सामने ,
मुश्क़िल है यक़ीन करना ;
ख़्वाब हो या हक़ीक़त।
डूबा वही तो उभरा है इश्क़ के साहिल में ;
हारा वही तो जीता है , इश्क़ के खेल में।
-परम गरवलिया ©
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