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मेरे लफ्ज़ों की छोटी छोटी बूंदे
मेरे सीने पर पड़ी तेरी यादों की
मिट्टी उखाड़ रही हैं
जैसे उखड़ जाता हो पेड़
प्रेम में रुठा हुआ प्रेमी और
बर्षों बाद मिला हुआ दोस्त
पंकज मुरेन्वी
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