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बिन तेरे कुछ भी नहीं जिंदगी मेरी
आ दो पल पास बैठ मेरे
ज़िंदगी की घड़ी कर दे पूरी
मुकम्मल न हुई ये जमीं न मुकम्मल
ये आसमाँ हुआ
अधूरा तेरे बिन सारा कारवाँ हुआ
बिन तेरे कुछ भी नहीं जिंदगी मेरी
तेरे बिन ये बूंदे ये बारिश कुछ भी
मेरा न हुआ
बस जलता दिख रहा है तेरी यादों
का धुआँ सोचता हूँ जब मैं लगता है
जैसे कुछ न हुआ
बिन तेरे कुछ भी नहीं जिंदगी मेरी
आ दो पल पास बैठ मेरे
ज़िंदगी की घड़ी कर दे पूरी
आग लगी है जो मन में कैसे मैं किसी
को बताऊँ क्यूँ न तुझको मैं चाहूँ कोई
वजह तो मुझको बताओ
कड़कती बिजली अँधेरी शाम धीमी सी
बारिश महीना सावन का लाया
आज फिर कोई मेरी यादों में तेरे जैसा
ही हूबहू याद आया
बिन तेरे कुछ भी नहीं जिंदगी मेरी
आ दो पल पास बैठ मेरे
ज़िंदगी की घड़ी कर दे पूरी
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