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कहना तो बहुत कुछ था
मगर सुनने के लिए कोई नहीं था .
जब सुनने वालों को फुर्सत मिली
तब शायद कहने वाला कोई नही था
बिखरा जब में टूट टूट कर
तब संभालने वाला कोई नही था
जब सम्भला खुद ब खुद तो याद आया
खुद ही टूटा था तोड़ने वाला कोई नही था
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